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‘सुभाषितसुधाबिन्दु:’ में निहित नीतितत्त्व विमर्श
oleh: Dr.Arun Kumar Nishad
Format: | Article |
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Diterbitkan: | SUGYAN KUMAR MAHANTY 2021-06-01 |
Deskripsi
‘नयति इति नीतिः’ अथवा नीयते अनया विश्वमिदं सम्यक्तया’ इन दो व्यावहारिक परिभाषाओं के अनुसार नी धातु से क्तिन् प्रत्यय करने से नीति शब्द बनता है , जो सामान्यतः सम्यक् लोक व्यवहार का वाचक होता है इससे यह पता चलता है कि हमारी परम्परा में नीति शब्द प्रत्येक स्तर पर अच्छे व्यवहार का वाचक है । भारतीय परम्परा में धर्म, अर्थ, काम के अनुसार जीवन की उत्कृष्टता निर्धारित हुई है । इसी बात को महाकवि भारवि ने अपने किरातार्जुनीयम् (1/11) महाकाव्य में कहा है- न बाधतेऽस्य त्रिगुण: परस्परम् । इसका आशय है कि मनुष्य जीवन के उपयोगी धर्म, अर्थ और काम इस प्रकार नियोजित होने चाहिए जिससे एक दूसरे को बाधित न करें । यह तीनों यदि सम्यक् रीति से परिचालित होंगे तो चतुर्थ चरण में सहज मोक्ष-प्रवृत्ति स्वाभाविक है ।